Friday, 18 September 2020
कोरोना से हमें क्या सीखना चाहिए
पिछले 100 सालों में ऐसा नहीं कि वैश्विक अस्थिरता का दौर पहली बार आया है; बीमारियों, आर्थिक मंदी, और 2 विश्वयुद्ध कुछ ऐसेदौर रहे हैं जिनसे सारा विश्व एक साथ जूझा है। SARS वाइरस की आपदा भी पिछले 30 सालों में लगभग 3 बार मानव जगत कोअपनी चपेट में ले चुकी है।मगर इस बार जितना आतंक शायद आज से 102 साल से पहले, यानि की 1918 के स्पैनिश-फ़्लू के दौरान ही आया होगा। इसके अलावा और भी कई आपदाएँ हैं, जिनसे मानव जगत पिछले 70-80 सालों से जूझ भी रहा है और छोटी-मोटी सफलताओं को छोड़ दें तो सही मायनों में लगातार हार ही रहा है।
दुःख की बात यह है कि, इन अधिकांश आपदाओं का सीधा सम्बंधसम्पूर्ण मानवता के भौतिक विकास से जुड़ी हुई है। स्पष्ट कर दूँ कि मेरी इस बात से यह निष्कर्ष निकालने की गलती ना की जाए कि मैंआधुनिक विज्ञान से जनित भौतिक प्रगति का विरोधी हूँ। बल्कि, इसके विपरीत मेरा मानना है कि सम्पूर्ण मानव जगत ने बहुत मेहनत सेजो वैज्ञानिक खोजें और प्रगति की है, वह अतुलनीय हैं।
वैदिक ऋषियों से लेकर अब तक अनेकानेक वैज्ञानिकों ने हमारे असंख्य देहिक, भौतिक और आत्मिक प्रश्नों को जानने में बहुत सी सफलताएँ अर्जित की हैं। मगर पिछले 2500 वर्षों में मानव जगत में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आना प्रारम्भ हुआ है और वह है, लालच और दूसरे की प्रगति को हिंसा द्वारा नष्ट करने अथवा हड़पने की प्रवृत्ति। फिर पिछले 1500 वर्षों में धर्म और पथों के नाम पर हिंसा का बढ़ाहुआ दौर आया। पिछले 700-800 सालों से से आधिपत्य कर (अ) सभ्यताओं ने लूटने की प्रक्रिया शुरू की है।
हाल ही के वर्षों में (19-20वीं शताब्दियों में) व्यापार और बाज़ार पर क़ब्ज़ा और 21वीं शताब्दी में बायलॉजिकल और इलेक्ट्रॉनिक हमलों से सूचना तंत्र पर आधिपत्य कर मन एवं अंतरराष्ट्रीय जल संसाधनों के आधिपत्य के लिए विश्वव्यापी लड़ाइयों का दौर शुरू होने जा रहा है। ऐसे में, यदि गौर से देखें तो पाएँगें हमने अपने ज्ञान से सिर्फ़ भूमिगत, धरा पर रहने और पैदा होने वाली ही वस्तु को, जल और वायूमंडल को सिर्फ़ दूषित ही किया है जिसके फलस्वरूप बीमारियाँ और आनुवंशिक त्रुटियों, डिप्रेशन, केन्सर, हार्ट अटैक, ब्रेन-ट्यूमर और सड़क दुर्घटनाओं से मानव लगातार जूझ रहा है, मगर जीत से दूर ही होता जा रहा है। ऐसे में मुझे लगता है, हमें अपने ऋषियों की जीवन शैली और ज्ञान से सीख लेकर प्रकृति से सामंजस्य बनाकर एक बार पुनः सीखना होगा।
यही बात कोरोना की महामारी ने हमें यही सिखाने का प्रयास किया है और हम, यदि अभी भी नहीं चेते तो बदलते वातावरण से अब जिस महामारी के दौर में जगत प्रवेश करेगा, वह शायद मानवता के अंत का प्रारम्भ भी हो सकता है।
I am is serving as Head of Cardiovascular and Thoracic Surgery at the department at prestigious Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences, at Lucknow, Uttar Pradesh. I also serve as Hon Dean of the Faculty of Yoga and Life Sciences, S-Vyasa Bengluru, Karnataka, and Vice Chairman of American Academy of Yoga and Meditation, Memphis, USA.
Friday, 14 August 2020
योग वसिष्ठ सार (आत्म-गीता)
१। द्रष्टा जो पुरुष है और दृश्य जगत है।
२। उस द्रष्टा और दृश्य के बुद्धी से मिलाप में आनंद होता है।
३। इष्ट के संयोग और अनिष्ट के वियोग का आनंद चित्त में दृढ़ होता है।
४। द्रष्टा, दर्शन और दृश्य को वासना का त्याग करना चाहिए| जो दर्शन से प्रकाशित होता है और जिसके प्रकाश से यह तीनों (द्रष्टा और दृश्य और बुद्धी) प्रकाशित होते हैं।
५। सम्पूर्ण-आनंद आत्मतत्व से उदय होता है | उस आत्म-तत्व (आत्मा) की हम उपासना करते हैं| जो निराभास और निर्मल है, जिसमे मन का अभाव है, वह अद्वैतरूप है|
६। अद्वैत आत्मा, द्रष्टा, दृश्य दोनों के मध्य में है और अस्ति नास्ति दोनों पक्षों से रहित सत्ता है यही सूर्य आदिक को भी प्रकाशता है|
७। जो ईश्वर सकार और हकार है, सकार -जिसके आदि में है और हकार -जिसके अंत में है। वह अंत से रहित, आनंद, अनंत, शिव, परमात्मा सर्वजीवों के ह्रदय में स्थित है।
८। जो हृदय में स्थित वह ईश्वर है उसे त्यागकर, जो देवों को पाने का यत्न करते हैं, वे पुरुष कौस्तुभमणि को त्यागकर और रत्नों की इच्छा करते हैं |
९। जो सब आशाओं को त्याग देते हैं उन्हें फल प्राप्त होता है। अर्थात जन्म-मरण आदि दुःख नष्ट हो जाते हैं और फिर नहीं उपजते|
१०। जो पदार्थों को अत्यंत विरसरूप जानता है और स्वयं को आशा रूपी विषबेल से बांधता है, वह दुर्बुद्धि, गर्धभ है -मनुष्य नहीं| जब-जब विषयों की ओर दृष्टी उठे उसे अपने विवेक से नष्ट करो। जब इस प्रकार शुद्ध आचरण करोगे तब संभाव को प्राप्त होगे और उससे आत्मपद को प्राप्त होकर अक्षय अविनाशी हो जाओगे|
I am is serving as Head of Cardiovascular and Thoracic Surgery at the department at prestigious Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences, at Lucknow, Uttar Pradesh. I also serve as Hon Dean of the Faculty of Yoga and Life Sciences, S-Vyasa Bengluru, Karnataka, and Vice Chairman of American Academy of Yoga and Meditation, Memphis, USA.
